तुम ही कहो अब मुस्कुराए कैसे
आते है बार बार मेरी आंख मे आंसू
हम अश्क अपने उनसे छुपाए कैसे
तेरी यादो से ही रौशन है मेरी दुनिया
ये दिया अपने हाथो से बुझाए कैसे
जुबां खुलती नही मेरी तेरी महफिल मे
इस भरे बज्म हम गीत सुनाए कैसे
29 दिसम्बर
उनके होठो पे तबसुम कोई प्यारा नही देखा
फिर निगाहों ने कोई ख्वाब दोबारा नही देखा
बारहा महके है गुज़रे हुए मौसम का खयाल
कफस में फिर कभी गुलज़ार नज़ारा नहीं देखा
शब को रोशन करें ये चाँद सितारे सारे
करे जो रूह को रोशन वो सितारा नही देखा
तिश्नगी रूह की मेरी जो बुझाये कोई
अब तलक अब्र कोई ऐसा आवारा नही देखा
यूँ तो जज़्बा भी, हौसला भी तमन्ना भी थी
डूबती कश्ती ने साहिल का इशारा नहीं देखा
जाने क्यूँ महका गुजरे हुये मौसम का खयाल
हमने सदियों से गुलज़ार का नज़ारा नही देखा
आपने कहा ……….