दस्तक हुई है दिल पे जब से तेरे प्यार की

खाहिश न रही अब तो किसी इंतजार की
दस्तक हुई है दिल पे जब से तेरे प्यार की

लग जाए कहीं ठेस न फिर मेरे ख्वाब को
हालत तो सम्हलने दो दिले बेकरार की

फिर से खिलेगे फूल अब उल्फत की ज़मीं पर
बाते चला करेंगी फिर अक्सर बहार की

बू आती थी नफरत की कभी गुलिश्तान से
महकेगी फिर बहार वहां अपने प्यार की
(11/2/2010-अनु)

2 responses to this post.

  1. aapki shayari ke kamal se ham khiche chale aaye hain..aap bahut hi accha likhti hain…
    behadd khushi hui hai padh kar..

    प्रतिक्रिया

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