खाहिश न रही अब तो किसी इंतजार की
दस्तक हुई है दिल पे जब से तेरे प्यार की
लग जाए कहीं ठेस न फिर मेरे ख्वाब को
हालत तो सम्हलने दो दिले बेकरार की
फिर से खिलेगे फूल अब उल्फत की ज़मीं पर
बाते चला करेंगी फिर अक्सर बहार की
बू आती थी नफरत की कभी गुलिश्तान से
महकेगी फिर बहार वहां अपने प्यार की
(11/2/2010-अनु)
Posted by Swapna Manjusha 'ada' on 20/02/2010 at 2:35 पूर्वाह्न
aapki shayari ke kamal se ham khiche chale aaye hain..aap bahut hi accha likhti hain…
behadd khushi hui hai padh kar..
Posted by singhanita on 20/02/2010 at 11:28 पूर्वाह्न
शुक्रिया आपकी ज़र्रा नवाजी का …. मेरा एक अन्य ब्लॉग है रेसिपी का यदि समय मिले तो हौसला बढ़ाएं – स्वाद का सफर – http://singhanita.wordpress.com